भारत के शहरों का विकास विश्व के सबसे बड़े शहरी परिवर्तन को बढ़ावा दे रहा है। 2030 तक भारत की शहरी आबादी कुल आबादी के एक तिहाई से बढ़कर लगभग 40% होने का अनुमान है - इसका अर्थ होगा कि भारत के शहरी केंद्रों में 600 मिलियन लोग रहेंगे। इसके अलावा, शहरों में रहने वाले दिव्यांगों की संख्या बढ़ने वाली है जो अभी लगभग 8 मिलियन (अर्थात भारत में सभी दिव्यांगों का एक तिहाई) है। दिव्यांगों, महिलाओं, लड़कियों, बुजुर्गों और अन्य कमजोर आबादी को पहले से ही परिवहन सेवाओं, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। और ये अनुमान भारतीय शहरों के मौजूदा अत्यधिक बोझ वाले बुनियादी ढांचे पर तनाव के बढ़ते स्तर का सुझाव देते हैं। जैसा कि महामारी ने प्रदर्शित किया है, विशेष रूप से डिजिटलीकरण में तेजी लाने, उन्नत आई.सी.टी. -सक्षम बुनियादी ढांचे और सेवाओं के उपयोग, डेटा-संचालित निर्णय और उन्नत नागरिक सेवाओं तथा जीवन स्तर के संचालन सहित सार्वजनिक स्थानों और बुनियादी ढांचे की प्रकृति और उपयोग की फिर से कल्पना करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है। शहरों में नई परियोजनाओं को लागू करने और नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने से सार्वभौमिक डिजाइन सिद्धांतों और सुलभ, समावेशी, सुरक्षित व रेसिलिएंट शहरी विकास की तत्काल आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए नागरिक-केंद्रित और सहभागी दृष्टिकोण के माध्यम से योजनाकारों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं में जागरूकता बढ़ाने, सीखने और ज्ञान साझा करने को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। शहरी विकास में डिजिटल विभाजन के अंतर को दूर करने के नए तरीके खोजने के लिए, व्यापक संदर्भों में, नागरिक भागीदारी के माध्यम से नवीन घरेलू समाधानों और दृष्टिकोणों को नया रूप देने और बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है। इस संदर्भ में, भारत में रा.न.का.सं. और संयुक्त राष्ट्र ने विशेष रूप से एस.डी.जी. 11 को संबोधित करते हुए भारत में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के तत्वावधान में 'स्मार्ट सॉल्यूशंस चैलेंज और समावेशी शहर पुरस्कार' शुरु किया गया है।
Utsav Choudhury Team Leader
Monica Thakur Program Associate